भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।
आज ना जाने क्यों  (काव्य)    Print  
Author:डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड
 

आज ना जाने क्यों फिर से
याद आ गया
नानी का वह प्यार और दुलार।

भीतर के कोठारे में
ना जाने कब से छुपा कर रखी मिठाई
हमारे स्वागत के लिये।

धोती के पल्ले में बंधे कुछ सिक्के।

आँखों में भारी असीम ममता
एक बार फिर मिल लेने की चाह।

अनगिनत दुआओँ से भरा
उनका वह झुर्रियों भरा हाथ।

अगली गर्मियों की छुट्टियों में
फिर से आने का वह न्यौता।

सभी कुछ तो याद है मुझे।
बस एक बार
आँख बंद करने की ही तो देर है!

डॉ॰ पुष्पा भारद्वाज-वुड
न्यूज़ीलैंड

 

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