मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
बापू की विदा  (काव्य)    Print  
Author:डॉ रामकुमार वर्मा
 

आज बापू की विदा है!
अब तुम्हारी संगिनी यमुना, त्रिवेणी, नर्मदा है!

तुम समाए प्राण में पर
प्राण तुमको रख न पाए
तुम सदा संगी रहे पर
हम तुम्हीं को छोड़ आए
यह हमारे पाप का विष ही हमारे उर भिदा है!
आज बापू की विदा है!

सो गए तुम किंतु तुमने
जागरण का युग दिया है
व्रत किए तुमने बहुत अब
मौन का चिर-व्रत लिया है!
अब तुम्हारे नाम का ही प्राण में बल सर्वदा है!
आज बापू की विदा है!

- रामकुमार वर्मा

 

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