समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।
गरू नानक देव जयंती | 27 नवंबर
 
 

गुरु नानक का जन्म संवत 1526 कार्तिक पूर्णिमा (15 अप्रैल 1469 - 22 सितंबर 1539) को तलवंडी ग्राम जिला लाहौर में हुआ था। इस स्ठान को अब 'ननकाना साहब' के नाम से जाना जाता है।

गरू नानक देव सिख धर्म के संस्‍थापक हैं।

इनके पिता का नाम कल्याणचंद (मेहता कालू ) व माता का नाम तृप्ता देवी था। 19 वर्ष के आयु में आपका विवाह गुरदासपुर के मूलचंद खत्री की कन्या सुलक्षणा देवी से हुआ। आपके दो पुत्र थे - श्रीचंद और लक्ष्मीचंद। श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए।

गुरु नानक देव के भजनों में कई भाषाओं के शब्द सम्मिलित हैं। लीजिये गुरु नानक देव के कुछ छंदों का आनंद लीजिए:


जो नर दुखमें दुख नहिं मानै।
सुख-सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै॥

नहिं निंदा, नहिं अस्तु तिजाके, लोभ-मोह-अभिमाना।
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना॥

आसा-मनसा सकल त्यागिकें, जग तें रहै निरासा।
काम-क्रोध जेहि परसै नाहिं, न तेहि घट ब्रह्म-निवासा॥

गुरु किरपा जेहिं नरपै कीन्ही, तिन्ह यह जुगति पिछानी।
नानक लीन भयो गोबिंद सों, ज्यों पानी सँग पानी॥

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गुरु नानक देव के पद

झूठी देखी प्रीत
जगत में झूठी देखी प्रीत।
अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥
मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥

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को काहू को भाई
हरि बिनु तेरो को न सहाई।
काकी मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई॥
धनु धरनी अरु संपति सगरी जो मानिओ अपनाई।
तन छूटै कुछ संग न चालै, कहा ताहि लपटाई॥
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥

गुरुनानक जयंती (गुरु नानक देव के जन्म-दिवस) को गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।

 
 

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