हमारी हिंदी भाषा का साहित्य किसी भी दूसरी भारतीय भाषा से किसी अंश से कम नहीं है। - (रायबहादुर) रामरणविजय सिंह।
वामनावतार पौराणिक रक्षाबंधन कथा
 
 

एक सौ  100 यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के  मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा  बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा।  इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना  की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और  राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए।  उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में माँग ली।

बलि के गु्रु शुक्रदेव ने ब्राह्मण रुप धारण किए हुए विष्णु को पहचान लिया  और बलि को इस बारे में सावधान कर दिया किंतु  दानवेन्द्र राजा बलि अपने वचन से न फिरे और तीन पग भूमि दान कर दी।

वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहाँ रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आख़िरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही वह रसातल लोक में पहुँच गया। 

जब बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से परेशान कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा? इस समस्या के समाधान के लिए लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया।  लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी यथा  रक्षा-बंधन  मनाया जाने लगा।


 
 
 
 
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