भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।

अमृतराय

अमृतराय प्रेमचंद के छोटे बेटे थे।  आपका जन्म 3 सितंबर 1921 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ। आप अपने पिता 'प्रेमचंद' की भाँति मूलतः कहानीकार व उपन्यासकार थे।

आपको अनुवादक व जीवनीकार के रूप में भी ख्याति मिली।  इसके अतिरिक्त आपने व्यंग्य और समालोचक भी लिखीं।  प्रेमचंद की जीवनी 'कलम का सिपाही' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नाट्य-लेखन में भी सक्रिय रहे। अंग्रेजी, बंगला और हिन्दी पर समान अधिकार था।

प्रमुख कृतियां: 'साहित्य में संयुक्त मोर्चा', 'सुबह का रंग', 'लाल धरती', 'नई समीक्षा', 'नागफनी का देश', 'हाथी के दांत', 'अग्निशिखा', 'फांसी के तख्ते से', 'कस्बे का एक दिन', 'गीली मिट्टी', 'कठघरे', 'जंगले', 'सहचिंतन', 'भटियाली', 'आधुनिक भावबोध की संज्ञा', 'बतरस', 'चतुरंग', 'सारंग' और 'धुआं'।


प्रमुख अनुवाद: 'स्पार्टाकस' का अनुवाद 'आदिविद्रोही', 'हैमलेट', 'समरगाथा'।  देश-विदेश के कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किये गए।

आपका विवाह सुभद्राकुमारी चौहान की बेटी सुधा चौहान से हुआ।

प्रेमचंद की बिखरी रचनाओं के संपादन के अतिरिक्त आपने 'हंस' और ‘नई कहानी' का संपादन भी किया। कई बार जेल जाना पड़ा।

14 अगस्त, 1996 को आपका निधन हो गया।

 

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गीली मिट्टी

नींद में ही जैसे मैंने माया की आवाज़ सुनी और चौंककर मेरी आंख खुल गई। बगल के पलंग पर नज़र गई, माया वहां नहीं थी। आज इतने सवेरे माया कैसे उठ गई, कुछ बात समझ में नहीं आई ।

आवाज़ दरवाज़े पर से आई थी । मैं हड़बड़ाकर उठा और वहां पहुंचा, तो क्या देखता हूं कि माया दरवाज़ा खोले खड़ी है और बाहर के बरामदे में एक दुबला-पतला आदमी, मंझोले कद का, सिर्फ़ एक जरासी लुगड़ी लपेटे, बाकी सब धड़ और टांगें नंगी, उकडू बैठा है। माया दरवाज़ा खोलने आई, तो आज सबसे पहले इसी आदमी के दर्शन हुए। मैंने भी देखा और मुझे भी गुस्सा आया कि यह मरदूद कैसे आ मरा । मैंने डपट कर पूछा-‘कौन हो तुम ? यहां कैसे आए ?"

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