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गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
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पीर - डॉ सुधेश |
हड्डियों में बस गई है पीर। |
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मजदूर की पुकार - अज्ञात |
हम मजदूरों को गाँव हमारे भेज दो सरकार |
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अभिशापित जीवन - डॉ॰ गोविन्द 'गजब' |
साथ छोड़ दे साँस, न जाने कब थम जाए दिल की धड़कन। |
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