भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
ग़ज़लें
ग़ज़ल क्या है? यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं: ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

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चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल  - अंजुम रहबर

चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है,
चांदी हो चाहे बर्क चमकती ज़रूर है।
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कुछ न किसी से कहें जनाब | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया

कुछ न किसी से कहें जनाब
अच्छा है चुप रहें जनाब
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल  - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते
मुहब्बत डालियों से फिर, कभी वो कर नहीं सकते
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दुख में भी परिचित मुखों को - त्रिलोचन

दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या
अपना ही सा उन का मन है यह कभी माना है क्या
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मशगूल हो गए वो - रोहित कुमार 'हैप्पी'

मशगूल हो गए वो, सब जश्न मनाने में
मेरे पाँव में हैं छाले, घर चलकर जाने में
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से
इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।
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कुमार नयन की दो ग़ज़लें  - कुमार नयन

खौलते पानी में 
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ग़रीबों, बेसहारों को - सर्वेश चंदौसवी

ग़रीबों, बेसहारों को महामारी से लड़ना है
मगर इससे भी पहले इनको बेकारी से लड़ना है।
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