जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

मजदूर की पुकार  (काव्य)

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Author: अज्ञात

हम मजदूरों को गाँव हमारे भेज दो सरकार
सुना पड़ा घर द्वार
मजबूरी में हम सब मजदूरी करते हैं
घरबार छोड़ करके शहारों में भटकते हैं

जो हमको लेकर आए वही छोड़ गए मझदार
कुछ तो करो सरकार
हम मजदूरों को गाँव हमारे भेज दो सरकार
सुना पड़ा घर द्वार

हमको ना पता था कि ये दिन भी आएंगे
कोरोना के कारण घरों में सब छिप जाएंगे
हम तो बस पापी पेट की खातिर झेल रहे हैं मार
कुछ तो करो सरकार
सुना पड़ा घर द्वार

-अज्ञात

[यह हृदय विदारक गीत भारत में कोरोना के समय हो रहे प्रवासी मजदूरों के पलायन के समय एक अज्ञात श्रमिक ने  गाया था।]

 

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