काव्य |
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जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।
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रोचक दोहे - विकल |
यह दोहे अत्यंत पठनीय व रोचक हैं चूंकि यह असाधारण दोहे हैं जिनमें न केवल लोकोक्तियाँ तथा मुहावरे प्रयोग किए गए हैं बल्कि उनका अर्थ भी दोहे में सम्मिलित है। ...
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पथ की बाधाओं के आगे | गीत - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar |
पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए अभी तो आधा पथ चले! तुम्हें नाव से कहीं अधिक था बाहों पर विश्वास, क्यों जल के बुलबुले देखकर गति हो गई उदास, ज्वार मिलेंगे बड़े भंयकर कुछ आगे चलकर-- अभी तो तट के तले तले! सीमाओं से बाँध नहीं पाता कोई मन को, सभी दिशाओं में मुड़ना पड़ता है जीवन को, हो सकता है रेखाओं पर चलना तुम्हें पड़े अभी तो गलियों से निकले! शीश पटकने से कम दुख का भार नहीं होगा, आँसू से पीड़ा का उपसंहार नहीं होगा, संभव है यौवन ही पानी बनकर बह जाए अभी तो नयन-नयन पिघले! ...
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रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया |
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे ...
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चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल - अंजुम रहबर |
चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है, चांदी हो चाहे बर्क चमकती ज़रूर है। ...
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श्रमिक का गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
रहा हाड़ ना मास मेरा जानू हूँ इतिहास तेरा।
हम धरती पर तंग हुए देवलोक में वास तेरा। जानू हूँ इतिहास तेरा॥ खाऊँ, ओड़ूँ, इसे बिछौऊं किया बड़ा विश्वास तेरा। जानू हूँ इतिहास तेरा॥
जो चाहे तू वो मैं बोलूँ ना बंधुआ, ना दास तेरा। जानू हूँ इतिहास तेरा॥
'रोहित' सुन ले बात ध्यान से वरना होगा नास तेरा। जानू हूँ इतिहास तेरा॥ ...
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नये सुभाषित - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
पत्रकार ...
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धर्म निभा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कवि कलम का धर्म निभा कलम छोड़ या सच बतला। ...
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माँ - जगदीश व्योम |
माँ कबीर की साखी जैसी तुलसी की चौपाई-सी माँ मीरा की पदावली-सी माँ है ललित रुबाई-सी। ...
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महानगर पर दोहे - राजगोपाल सिंह |
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोर रोज़ जगाता है हमें, कान फोड़ता शोर ...
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एक वाक्य - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti |
चेक बुक हो पीली या लाल, दाम सिक्के हों या शोहरत -- कह दो उनसे जो ख़रीदने आये हों तुम्हें हर भूखा आदमी बिकाऊ नहीं होता है! ...
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भूखे-प्यासे - देवेन्द्र कुमार मिश्रा |
वे भूखे प्यासे, पपड़ाये होंठ सूखे गले, पिचके पेट, पैरों में छाले लिए पसीने से तरबतर, सिरपर बोझा उठाये सैकड़ो मील पैदल चलते पत्थर के नहीं बने पथरा गये चलते-चलते। ...
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उपलब्धि - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti |
मैं क्या जिया ? ...
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जवाब - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड |
दोहराता रहेगा इतिहास भी युगों-युगों तक यह दुर्योधन - दुशासन की कुटिल राजनीति की बिसात पर खेली गयी द्रौपदी चीर-हरण जैसी प्रवासी मजदूरों की अनोखी कहानी, जब पूरी सभा रही मौन और मानवता - सिसकती व कराहती हुई दम तोड़ती रही थी... इन प्रश्नों का जवाब एक दिन ये पीढ़ी तुमसे अवश्य मांगेगी... मांगेगी अवश्य। ...
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते मुहब्बत डालियों से फिर, कभी वो कर नहीं सकते ...
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कुछ न किसी से कहें जनाब | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया |
कुछ न किसी से कहें जनाब अच्छा है चुप रहें जनाब ...
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कौन है वो? - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड |
कोई है जिसके पैरों कि आहट से चौंक उठते हैं कान कोई है जिसकी याद भुला देती है सारे काम कोई है जिसकी चाह कभी बनती है कमजोरी कभी बनती है शक्ति कोई है जो कंदील सा टिमटिमाता है मन के सूने गलियारों में कोई है जो प्रतिध्वनि सा गूंजता है ह्रदय कि प्राचीरों में कौन है वो? तुम हो, तुम हो, तुम्हीं तो हो। ...
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कबीर दोहे -6 - कबीरदास | Kabirdas |
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर । तब लग जीव जग कर्मवश, ज्यों लग ज्ञान न पूर ॥ 101 ॥ ...
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जीवन - नरेंद्र शर्मा |
घडी-घड़ी गिन, घड़ी देखते काट रहा हूँ जीवन के दिन क्या सांसों को ढोते-ढोते ही बीतेंगे जीवन के दिन? सोते जगते, स्वप्न देखते रातें तो कट भी जाती हैं, पर यों कैसे, कब तक, पूरे होंगे मेरे जीवन के दिन? ...
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ज़िंदगी तुझे सलाम - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड |
सोचा था अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है अभी तो घर भी नहीं बसाया ना ही अभी किसी को अपना बनाया। ...
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सत्ता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
सत्ता अंधी है लाठी के सहारे चलती है। सत्ता बहरी है सिर्फ धमाके सुनती है। सत्ता गूंगी है सिर्फ माइक पर हाथ नचाती है। कागज छूती नहीं आगे सरकाती है। सत्ता के पैर भारी हैं कुर्सी पर बैठे रहने की बीमारी है। पकड़कर बिठा दो मारुति में चढ़ जाती है। वैसे लंगड़ी है बैसाखियों के बल चलती है। सत्ता अकड़ू है माला पहनती नहीं, पकड़ू है। कोई काम करती नहीं अपने हाथ से, चल रही है चमचों के साथ से। ...
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अंततः - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
बाहर से लहूलुहान आया घर मार डाला गया अंततः ...
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पीर - डॉ सुधेश |
हड्डियों में बस गई है पीर । पाँव में काँटा लगा जैसे जो बढ़ते क़दम को रोके मगर इस का क्या करूँ जो गई मेरी हड्डियों को चीर । ...
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दुर्दिन - अलेक्सांद्र पूश्किन |
स्वप्न मिले मिट्टी में कब के, और हौसले बैठे हार, आग बची है केवल अव तो फूँक हृदय जो करती क्षार। ...
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दुख में भी परिचित मुखों को - त्रिलोचन |
दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या अपना ही सा उन का मन है यह कभी माना है क्या ...
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श्रमिक हाइकु - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
ये मज़दूर कितने मजबूर घर से दूर! ...
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हैं खाने को कौन - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को कुछ सोयें अधपेट तरस दाने-दाने को कुछ तो लें अवतार स्वर्ग का सुख पाने को कुछ आयें बस नरक भोग कर मर जाने को श्रम किसका है, मगर कौन हैं मौज उड़ाते हैं खाने को कौन, कौन उपजा कर लाते? ...
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पत्रकारिता : तब और अब | डॉ रामनिवास मानव के दोहे - डा रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
पत्रकारिता थी कभी, सचमुच मिशन पुनीत। त्याग तपस्या से भरा, इसका सकल अतीत।। ...
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कार-चमत्कार | कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
[इसमें 64 कार हैं, सरकार] ...
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मशगूल हो गए वो - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मशगूल हो गए वो, सब जश्न मनाने में मेरे पाँव में हैं छाले, घर चलकर जाने में ...
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स्वयं से - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
आजकल तुम धीमा बोलने लगी या मुझे सुनाई देने लगा कम? ...
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मजदूर की पुकार - अज्ञात |
हम मजदूरों को गाँव हमारे भेज दो सरकार सुना पड़ा घर द्वार मजबूरी में हम सब मजदूरी करते हैं घरबार छोड़ करके शहारों में भटकते हैं ...
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अभिशापित जीवन - डॉ॰ गोविन्द 'गजब' |
साथ छोड़ दे साँस, न जाने कब थम जाए दिल की धड़कन। बोझ उठाये कंधों पर, जीते कितना अभिशापित जीवन॥ ...
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से। ...
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परमात्मा रोया होगा - संतोष सिंह क्षात्र |
कुछ पढ़े-लिखे मूर्खों के कारण कितनों ने अपनों को खोया होगा। स्वयं की रचना पर परमात्मा फूट फूट कर रोया होगा।। ...
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मीठी लोरी - डाक्टर सईद अहमद साहब 'सईद' बरेलवी |
लाडले बापके, अम्मा के दुलारे सो जा, ऐ मेरी आँख के तारे, मेरे प्यारे सो जा। गोद में रोज जो रातों को सुलाती है तुझे, मीठी वो नींद तेरी, देख, बुलाती तुझे॥ ...
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सीख - हितेष पाल |
अपने अपने दायरे रहना सीख लो ज़रा सा क़ायदे में रहना सीख लो। अभी तो क़ुदरत ने सिर्फ़ समझाया है अपना असली रूप कहाँ दिखलाया है? मनुष्य को अपना दायरा बताया है फिर भी उसे कुछ समझ ना आया है। क़ुदरत के दायरे का मज़ाक़ बनाया है फिर कहता है क़ुदरत ने क़हर मचाया है। ...
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सीख लिया - प्रभा मिश्रा |
अब उलझनों में अटकना छूट गया। क्योंकि मैंने अब संभलना सीख लिया। कभी राहों में डगमगाते हुए चलते थे अब अपनी हर राह पर बेफिक्र चलना सीख लिया। कभी मेरी मंजिल का कोई ठिकाना तय ना था पर अब मैंने अपनी मंजिलें खुद से बनाना सीख लिया। ...
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काश ! - साकिब उल इस्लाम |
काश कि कोई ऐसा दिन हो जाए ज़माने के सारे सितम खो जाएं। ...
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थोड़ा इंतजार - राहुल सूर्यवंशी |
नियमों से नहीं, तो निवेदन से रुक डंडे से नहीं, तो ठंडे से रुक महामारी की है भरमार, तू कर थोड़ा इंतजार। ...
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चले तुम कहाँ - नरेश कुमारी |
ओढ़कर सोज़-ए-घूंघट चले तुम कहाँ? ...
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औरत फूल की मानिंद है - रश्मि विभा त्रिपाठी |
फूल किस कदर घबरा रहा है, एक भंवरा इर्द-गिर्द उसके मंडरा रहा है। ...
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स्वीकार करो - रूपा सचदेव |
मैं जैसी हूँ वैसी ही मुझे स्वीकार करो। ...
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पिछली प्रीत - जाँ निसार अख्तर |
हवा जब मुँह-अँधेरे प्रीत की बंसी बजाती है, कोई राधा किसी पनघट के ऊपर गुनगुनाती है, मुझे इक बार फिर अपनी मोहब्बत याद आती है! ...
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मौत की रेल - डॉ॰ चित्रा राठौड़ |
ज़िन्दगी की पटरियों पर से मौत की रेल गुज़र गई भूख और मजबूरी कुछ और बदनसीबों को निगल गई। जहॉं कुछ देर पहले तक शोर था आस भरी बातों का अब वहीं पर मरघट सी मनहूसियत पसर गई। रोटी-सब्ज़ी और सामान बिखर गया पटरियों पर इंसानी देह लेकिन पोटलियों में सिमट गई। कोरोना महामारी का तो फ़कत बहाना रहा हक़ीक़त में रोज़ी-रोटी की फिक्र ही इन गरीबों को निगल गई। ज़िन्दगी की पटरियों पर से मौत की रेल गुज़र गई भूख औ' मजबूरी कुछ और बदनसीबों को निगल गई। ...
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आत्मचिंतन - डॉ॰ कामना जैन |
चिंतित हो गया है किंचित, आज मानव, इस आत्मचिंतन की अवधि में। जीवन पर जब आया संकट, तब समझ वह पाया, इस अखंड ब्रह्मांड की लीला। अजेय प्रकृति को विजित मान, आज अपने ही पापों की गठरी को ढो रहा। मानव का अहंकार, कर रहा था प्रकृति का तिरस्कार। रोजी-रोटी और सुविधाओं की आपाधापी में, चर-अचराचर जगत और स्वयं से भी दूर हो गया। बढ़ती बाढ़ों, भूकंपों, तूफानों के कहरों से, अब तो विज्ञान भी डोल गया। असीमित आकांक्षाओं ने ही तो दावानल दहकाया था, बेजुबान मासूम जीवो की चितकार ने भी यही दिखलाया था। मारा-मारा, भागा-भागा फिर रहा था मानव , पर इस दहक को न रोक पाया था। फिर मेघों की रिमझिम बूंदों ने यह जतलाया था, प्रकृति बड़ी बलवान है। मानव के बस में नहीं कुछ, जब प्रकृति कुपित होती है, प्लेग, चेचक, सार्स, स्वाइन और इबोला, सब प्रकृति के हस्ताक्षर हैं। कोरोना भी पदचाप उसी की, पुनः उसी ने चेताया है। ले लो सबक अनूठे, इस आत्मचिंतन की अवधि में, अन्यथा हाहाकार मच जाएगा। मां का हृदय छलनी हुआ तो, मानव जीवन पर भी, विराम चिन्ह लग जाएगा, विराम चिन्ह लग जाएगा। ...
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कब तक लड़ोगे - बेबी मिश्रा |
मत लड़ो सब जो चले गए उनसे डरो सब क्या पता कल क्या हो आज उन पर है कल तुम पर हो आसान है कहना मुश्किल है सहना संभलो कब तक लड़ोगे । ...
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मुक्तक - ताराचंद पाल 'बेकल' |
समय देख कर आदमी यदि संभलता, नया युग धरा पर ज़हर क्यों उगलता! तरसती न चाहें, भटकती न साधें, अगर आदमी, आदमी को न छलता। ...
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मत बाँटो इंसान को | बाल कविता - विनय महाजन |
मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर ने बाँट लिया भगवान को। धरती बाँटी, सागर बाँटा मत बाँटो इंसान को।। अभी राह तो शुरू हुई है- मंजिल बैठी दूर है। उजियाला महलों में बंदी- हर दीपक मजबूर है।। मिला न सूरज का सँदेसा - हर घाटी मैदान को। धरती बाँटी, सागर बाँटा मत बाँटो इसान को।। ...
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जै-जै कार करो - अजातशत्रु |
ये भी अच्छे वो भी अच्छे जै-जै कार करो डूब सको तो चूल्लू भर पानी में डूब मरो ...
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कुमार नयन की दो ग़ज़लें - कुमार नयन |
खौलते पानी में ...
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ग़रीबों, बेसहारों को - सर्वेश चंदौसवी |
ग़रीबों, बेसहारों को महामारी से लड़ना है मगर इससे भी पहले इनको बेकारी से लड़ना है। ...
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