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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
Articles Under this Category |
रोचक दोहे - विकल |
यह दोहे अत्यंत पठनीय व रोचक हैं चूंकि यह असाधारण दोहे हैं जिनमें न केवल लोकोक्तियाँ तथा मुहावरे प्रयोग किए गए हैं बल्कि उनका अर्थ भी दोहे में सम्मिलित है। |
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पथ की बाधाओं के आगे | गीत - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar |
पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिए |
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रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया |
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे |
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चेहरे से दिल की बात | ग़ज़ल - अंजुम रहबर |
चेहरे से दिल की बात छलकती ज़रूर है, |
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नये सुभाषित - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
पत्रकार |
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धर्म निभा - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कवि कलम का धर्म निभा |
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माँ - जगदीश व्योम |
माँ कबीर की साखी जैसी |
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महानगर पर दोहे - राजगोपाल सिंह |
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोर |
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श्रमिक का गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
रहा हाड़ ना मास मेरा |
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भूखे-प्यासे - देवेन्द्र कुमार मिश्रा |
वे भूखे प्यासे, पपड़ाये होंठ |
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एक वाक्य - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti |
चेक बुक हो पीली या लाल, |
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उपलब्धि - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti |
मैं क्या जिया ? |
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जवाब - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड |
दोहराता रहेगा इतिहास |
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कुछ न किसी से कहें जनाब | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया |
कुछ न किसी से कहें जनाब |
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झरे हों फूल गर पहले | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
झरे हों फूल गर पहले, तो फिर से झर नहीं सकते |
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कौन है वो? - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड |
कोई है |
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कबीर दोहे -6 - कबीरदास | Kabirdas |
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर । |
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जीवन - नरेंद्र शर्मा |
घडी-घड़ी गिन, घड़ी देखते काट रहा हूँ जीवन के दिन |
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ज़िंदगी तुझे सलाम - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड |
सोचा था अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है |
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सत्ता - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
सत्ता अंधी है |
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अंततः - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
बाहर से लहूलुहान |
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पीर - डॉ सुधेश |
हड्डियों में बस गई है पीर। |
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दुर्दिन - अलेक्सांद्र पूश्किन |
स्वप्न मिले मिट्टी में कब के, |
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दुख में भी परिचित मुखों को - त्रिलोचन |
दुख में भी परिचित मुखों को तुम ने पहचाना है क्या |
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श्रमिक हाइकु - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
ये मज़दूर |
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हैं खाने को कौन - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को |
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पत्रकारिता : तब और अब | डॉ रामनिवास मानव के दोहे - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
पत्रकारिता थी कभी, सचमुच मिशन पुनीत। |
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कार-चमत्कार | कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
[इसमें 64 कार हैं, सरकार] |
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मशगूल हो गए वो - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मशगूल हो गए वो, सब जश्न मनाने में |
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स्वयं से - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
आजकल |
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मजदूर की पुकार - अज्ञात |
हम मजदूरों को गाँव हमारे भेज दो सरकार |
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अभिशापित जीवन - डॉ॰ गोविन्द 'गजब' |
साथ छोड़ दे साँस, न जाने कब थम जाए दिल की धड़कन। |
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से |
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परमात्मा रोया होगा - संतोष सिंह क्षात्र |
कुछ पढ़े-लिखे मूर्खों के कारण |
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मीठी लोरी - डाक्टर सईद अहमद साहब 'सईद' बरेलवी |
लाडले बापके, अम्मा के दुलारे सो जा, |
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सीख - हितेष पाल |
अपने अपने दायरे रहना सीख लो |
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सीख लिया - प्रभा मिश्रा |
अब उलझनों में अटकना छूट गया। |
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काश ! - साकिब उल इस्लाम |
काश कि कोई ऐसा दिन हो जाए |
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थोड़ा इंतजार - राहुल सूर्यवंशी |
नियमों से नहीं, तो निवेदन से रुक |
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चले तुम कहाँ - नरेश कुमारी |
ओढ़कर सोज़-ए-घूंघट |
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औरत फूल की मानिंद है - रश्मि विभा त्रिपाठी |
फूल |
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स्वीकार करो - रूपा सचदेव |
मैं जैसी हूँ |
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पिछली प्रीत - जाँ निसार अख्तर |
हवा जब मुँह-अँधेरे प्रीत की बंसी बजाती है, |
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मौत की रेल - डॉ॰ चित्रा राठौड़ |
ज़िन्दगी की पटरियों पर से मौत की रेल गुज़र गई |
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आत्मचिंतन - डॉ॰ कामना जैन |
चिंतित हो गया है किंचित, |
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कब तक लड़ोगे - बेबी मिश्रा |
मत लड़ो सब जो चले गए उनसे डरो सब |
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मुक्तक - ताराचंद पाल 'बेकल' |
समय देख कर आदमी यदि संभलता, |
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जै-जै कार करो - अजातशत्रु |
ये भी अच्छे वो भी अच्छे |
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कुमार नयन की दो ग़ज़लें - कुमार नयन |
खौलते पानी में |
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ग़रीबों, बेसहारों को - सर्वेश चंदौसवी |
ग़रीबों, बेसहारों को महामारी से लड़ना है |
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