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कविताएं |
देश-भक्ति की कविताएं पढ़ें। अंतरजाल पर हिंदी दोहे, कविता, ग़ज़ल, गीत क्षणिकाएं व अन्य हिंदी काव्य पढ़ें। इस पृष्ठ के अंतर्गत विभिन्न हिंदी कवियों का काव्य - कविता, गीत, दोहे, हिंदी ग़ज़ल, क्षणिकाएं, हाइकू व हास्य-काव्य पढ़ें। हिंदी कवियों का काव्य संकलन आपको भेंट! |
Articles Under this Category |
माँ - जगदीश व्योम |
माँ कबीर की साखी जैसी |
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रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया |
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे |
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नये सुभाषित - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
पत्रकार |
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भूखे-प्यासे - देवेन्द्र कुमार मिश्रा |
वे भूखे प्यासे, पपड़ाये होंठ |
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एक वाक्य - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti |
चेक बुक हो पीली या लाल, |
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जवाब - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड |
दोहराता रहेगा इतिहास |
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उपलब्धि - धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti |
मैं क्या जिया ? |
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कौन है वो? - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड |
कोई है |
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ज़िंदगी तुझे सलाम - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड |
सोचा था अभी तो बहुत कुछ करना बाक़ी है |
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जीवन - नरेंद्र शर्मा |
घडी-घड़ी गिन, घड़ी देखते काट रहा हूँ जीवन के दिन |
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अंततः - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
बाहर से लहूलुहान |
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दुर्दिन - अलेक्सांद्र पूश्किन |
स्वप्न मिले मिट्टी में कब के, |
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हैं खाने को कौन - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को |
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स्वयं से - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
आजकल |
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परमात्मा रोया होगा - संतोष सिंह क्षात्र |
कुछ पढ़े-लिखे मूर्खों के कारण |
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मीठी लोरी - डाक्टर सईद अहमद साहब 'सईद' बरेलवी |
लाडले बापके, अम्मा के दुलारे सो जा, |
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सीख - हितेष पाल |
अपने अपने दायरे रहना सीख लो |
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सीख लिया - प्रभा मिश्रा |
अब उलझनों में अटकना छूट गया। |
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काश ! - साकिब उल इस्लाम |
काश कि कोई ऐसा दिन हो जाए |
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थोड़ा इंतजार - राहुल सूर्यवंशी |
नियमों से नहीं, तो निवेदन से रुक |
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चले तुम कहाँ - नरेश कुमारी |
ओढ़कर सोज़-ए-घूंघट |
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औरत फूल की मानिंद है - रश्मि विभा त्रिपाठी |
फूल |
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स्वीकार करो - रूपा सचदेव |
मैं जैसी हूँ |
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पिछली प्रीत - जाँ निसार अख्तर |
हवा जब मुँह-अँधेरे प्रीत की बंसी बजाती है, |
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मौत की रेल - डॉ॰ चित्रा राठौड़ |
ज़िन्दगी की पटरियों पर से मौत की रेल गुज़र गई |
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आत्मचिंतन - डॉ॰ कामना जैन |
चिंतित हो गया है किंचित, |
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कब तक लड़ोगे - बेबी मिश्रा |
मत लड़ो सब जो चले गए उनसे डरो सब |
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मुक्तक - ताराचंद पाल 'बेकल' |
समय देख कर आदमी यदि संभलता, |
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जै-जै कार करो - अजातशत्रु |
ये भी अच्छे वो भी अच्छे |
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