मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
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जब फ़िराक़ नेहरू से ख़फ़ा हो गए  - रोहित कुमार हैप्पी

एक बार 1948 में, जवाहरलाल नेहरू ने 'फ़िराक़' को 'आनंद भवन' में एक बैठक के लिए आमंत्रित किया था। वहाँ पहुंचने पर जब रिसेप्शनिस्ट ने उनका नाम पूछकर, बैठने को कहा तो फ़िराक़ विचलित हो गए। यह वही घर था, जहाँ वह चार साल जवाहरलाल के साथ रहे थे। अब जब जवाहरलाल प्रधानमंत्री थे तो उन्हें इंतजार करना होगा? फिराक ने रघुपति सहाय के रूप में अपना नाम दिया, जिसे रिसेप्शनिस्ट ने कागज की एक पर्ची पर 'आर. सहाय' के रूप में लिखा और उसे अंदर भेज दिया। फिराक लगभग पंद्रह मिनट ( या कुछ ज्यादा) बेसब्री से इंतजार करते रहे और फिर नाराज हो गए। वह रिसेप्शनिस्ट पर लगभग चिल्लाए, 'मैं यहां इंतजार करने नहीं आया हूँ। मैं यहाँ जवाहरलाल के निमंत्रण पर आया हूँ। मुझे आज तक इस घर में प्रवेश करने से किसी ने कभी नहीं रोका। अब क्यों? ठीक है, उन्हें बताएं कि मैं 8/4 बैंक रोड पर रहता हूँ, और बाहर की ओर चल दिए।
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रोनाल्ड स्टुअर्ट मेक्ग्रेगॉर - विदेशी हिंदी सेवी  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

रोनाल्ड स्टुअर्ट मेक्ग्रेगॉर का जन्म न्यूजीलैंड में 1929 में हुआ था। मेक्ग्रेगॉर के माता-पिता स्कॉटिश थे। बचपन में मेक्ग्रेगॉर को किसी ने फीजी से प्रकाशित हिंदी व्याकरण की एक पुस्तक भेंट की थी। इसी के फलस्वरूप उनका हिंदी की ओर रूझान हो गया।
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आत्मनिर्भरता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

विद्वानों का यह कथन बहुत ठीक है कि नम्रता ही स्वतन्त्रता की धात्री या माता है। लोग भ्रमवश अहंकार-वृत्ति को उसकी माता समझ बैठते हैं, पर वह उसकी सौतेली माता है जो उसका सत्यानाश करती है। चाहे यह सम्बन्ध ठीक हो या न हो, पर इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्मसंस्कार के लिए थोड़ी-बहुत मानसिक स्वतन्त्रता परम आवश्यक है-चाहे उस स्वतन्त्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नम्रता ही से उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्मनिर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है। युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि उसकी आकांक्षाएँ उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटों और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे। ये बातें आत्म-मर्यादा के लिए आवश्यक हैं। यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है - हमारा शरीर, हमारी आत्मा, हमारे कर्म, हमारे भोग, हमारे घर की और बाहर की दशा, हमारे बहुत से अवगुण और थोडे़ गुण सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते हैं कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए। नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है, जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मन्द हो जाती है, जिसके कारण आगे बढ़ने के समय भी वह पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर चटपट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर लगाये। सच्ची आत्मा वही है जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच, अपनी राह आप निकालती है।
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कछुआ-धरम | निबंध - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri


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प्रशांत के हिंदी साहित्यकार और उनकी रचनाएं - भारत-दर्शन

प्रशांत के साहित्यकार और उनकी रचनाएं

हमने 'भारत-दर्शन' पर प्रशांत के हिंदी साहित्यकारों के अंतर्गत न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और फीजी के साहित्यकारों के जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ संकलित की हैं। भारत-दर्शन का प्रयास है कि प्रशांत के रचनाकारों की रचनाएँ पाठक इस मंच पर एक साथ पढ़ सके।
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