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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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साहित्य - प्रताप नारायण मिश्र |
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दोहे और सोरठे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra |
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चंद्रशेखर आज़ाद | गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
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सुनीता शर्मा के हाइकु - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड |
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संगीत पार्टी - सुषम बेदी |
तबले पर कहरवा बज रहा था। सुनीता एक चुस्त-सा फिल्मी गीत गा रही थी। आवाज़ मधुर थी पर मँजाव नहीं था। सो बीच-बीच में कभी ताल की गलती हो जाती तो कभी सुर ठीक न लगता। |
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आदिम स्वप्न - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया |
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अर्थहीन - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया |
कटु वचनों से आहत कर |
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सफाई - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड |
पूछा हमसे किसी ने |
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यहीं धरा रह जाए सब | भजन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
प्राण पंछी उड़ जाए जब, यहीं धरा रह जाए सब |
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कोरोना हाइकु - सत्या शर्मा 'कीर्ति' |
कोरोना मार |
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सुखी आदमी - केदारनाथ सिंह | Kedarnath Singh |
आज वह रोया |
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आदमी से अच्छा हूँ ....! - हलीम 'आईना' |
भेड़िए के चंगुल में फंसे |
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सोऽहम् | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri |
करके हम भी बी० ए० पास |
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सफ़र में धूप तो होगी | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली |
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो |
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सुनीति | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri |
निज गौरव को जान आत्मआदर का करना |
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बेधड़क दोहावली - बेधड़क |
गुस्सा ऐसा कीजिए, जिससे होय कमाल । |
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फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan |
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चलना हमारा काम है - शिवमंगल सिंह सुमन |
गति प्रबल पैरों में भरी |
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भारत की जय | कविता - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri |
हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, क्रिस्ती, मुसलमान |
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जाम होठों से फिसलते - शांती स्वरुप मिश्र |
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अहम की ओढ़ कर चादर - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित' |
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मेरे बच्चे तुझे भेजा था - अलका जैन |
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खूनी पर्चा - वंशीधर शुक्ल |
अमर भूमि से प्रकट हुआ हूं, मर-मर अमर कहाऊंगा, |
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उठ जाग मुसाफिर भोर भई - वंशीधर शुक्ल |
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प्रक्रिया - श्रीकांत वर्मा |
मैं क्या कर रहा था |
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प्रदूषण का नाम प्लास्टिक - कुमार जितेन्द्र "जीत" |
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कोमल मैंदीरत्ता की दो कवितायें - कोमल मैंदीरत्ता |
मेरी अपनी किताबों की दुनिया |
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काम बनता हुआ भी बिगड़े सब | ग़ज़ल - अंकुर शुक्ल 'अनंत' |
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ये दुनिया तुम को रास आए तो कहना | ग़ज़ल - जावेद अख्तर |
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