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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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अजब हवा है - कृष्णा कुमारी |
अब की बार अरे ओ फागुन |
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आज कैसी वीर, होली? - क्षेमचन्द्र 'सुमन' |
है उषा की पुणय-वेला |
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किस रंग खेलूँ अबके होली - विवेक जोशी |
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जय जय जय अंग्रेजी रानी! - डॉ. रामप्रसाद मिश्र |
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पेट महिमा - बालमुकुंद गुप्त |
साधु पेट बड़ा जाना। |
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हास्य ही सहारा है - डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल |
जिंदगी हो गई है तंगदस्त |
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विचित्र विवशता! - मधुप पांडेय |
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लंच! प्रपंच!! - मधुप पांडेय |
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प्रयोगवाद - दिनेश कुमार गोयल |
आलू! |
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मसख़रा मशहूर है... | हज़ल - हुल्लड़ मुरादाबादी |
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नया ‘वाद’ - निशिकांत |
एक साहित्य गोष्ठी में |
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ढोल, गंवार... - सुरेंद्र शर्मा |
मैंने अपनी पत्नी से कहा -- |
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उन्हें आज ... - बेढब बनारसी |
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विरह का गीत - कवि चोंच |
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उस खुदा का नहीं कानून समझते हैं वे |
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होली के गीत - भारत दर्शन संकलन |
त्योहारों को आधार बनाकर गीत लेखन की परम्परा हमारे देश में अत्यन्त प्राचीन है। भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में प्रारम्भ से ऐसे गीतों की रचना की जाती है जो विभिन्न त्योहारों के अवसर पर गाए जाते हैं। |
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अन्तस् पीड़ा का गहन जाल - सागर |
अधरों पर हास------- |
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