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गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
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अरी भागो री भागो री गोरी भागो - भारत दर्शन संकलन |
अरी भागो री भागो री गोरी भागो, |
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आज की होली - ललितकुमारसिंह 'नटवर' |
अजी! आज होली है आओ सभी। |
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कल कहाँ थे कन्हाई - भारत दर्शन संकलन |
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई |
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अजब हवा है - कृष्णा कुमारी |
अब की बार अरे ओ फागुन |
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आज कैसी वीर, होली? - क्षेमचन्द्र 'सुमन' |
है उषा की पुणय-वेला |
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होली के गीत - भारत दर्शन संकलन |
त्योहारों को आधार बनाकर गीत लेखन की परम्परा हमारे देश में अत्यन्त प्राचीन है। भारतवर्ष के प्रत्येक क्षेत्र में प्रारम्भ से ऐसे गीतों की रचना की जाती है जो विभिन्न त्योहारों के अवसर पर गाए जाते हैं। |
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