यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

विचित्र विवशता! (काव्य)

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Author: मधुप पांडेय

‘उधर प्रशासन को
चुस्त बनाने के
अथक प्रयास हो रहे हैं
और इधर आप
टेबल पर सिर रखकर
आराम से सो रहे हैं!'
उत्तर मिला--
‘अब आप ही बताएं!
ऑफिस में ‘तकिया'
कहां से लाएं?'

-मधुप पांडेय
[श्रेष्ठ हास्य व्यंग्य कविताएं, प्रभात प्रकाशन, दिल्ली]

 

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