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 बहरे या गहरे | हास्य-व्यंग कविता
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

बहरे या गहरे

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar

अचानक तुम्हारे पीछे
कोई कुत्ता भोंके,
तो क्या तुम रह सकते हो
बिना चोंके?

अगर रह सकते हो
तो या तो तुम बहरे हो,
या फिर बहुत गहरे हो!

- अशोक चक्रधर
[सोची-समझी, प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली]

 

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