जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

शारदा और मोर

 (कथा-कहानी) 
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रचनाकार:

 सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

शारदा देवताओं की रानी थीं । वैसी रूपवती दूसरी देवी नहीं थी । उनकी प्यारी चिड़िया मोर था । खुशनुमा परों और भारी-भरकम आकार के कारण वह देवताओं की रानी सरस्वती का वाहन होने लायक था ।

कुछ हो, एक दिन मोर ने मन में सोचा, "मेरे साथ बड़ा बुरा बर्ताव किया गया है । मुझे वैसी अच्छी आवाज नहीं दी गयी जैसे कोयल को, नहीं तो रूप के अनुरूप ही मेरा स्वर होता ।" उसने शारदा से कोयल की-सी आवाज माँगी ।

देवी ने उसकी विनय पर यह उत्तर दिया- "हर चिड़िया को उसके योग्य दान मिला है । कोयल काली और सीधी चिड़िया है । उसको मधुर स्वर मिला । तुम्हारी आवाज तीखी और दिल को वैसी लुभाने वाली नहीं, मगर तुम्हारे पर इतने सुन्दर हैं कि देखकर दूसरों को जलन होती है । तुम्हें जो क्रुछ मिला है, उसके लिए कृतज्ञ रहो । जो तुम्हें नहीं मिल सकता, उसके लिए हाथ न बढ़ाओ । अपने भाग्य से सन्तोष रखना सीखो ।"

- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

[निराला की सीखभरी कहानियां]


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यदि आप इन कहानियों को अपने किसी प्रकार के प्रकाशन (वेब साइट, ब्लॉग या पत्र-पत्रिका) में प्रकाशित करना चाहें तो कृपया मूल स्रोत का सम्मान करते हुए 'भारत-दर्शन' का उल्लेख अवश्य करें।

 

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