हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

तुलसी बाबा

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 त्रिलोचन

तुलसी बाबा, भाषा मैंने तुमसे सीखी
       मेरी सजग चेतना में तुम रमे हुए हो ।
कह सकते थे तुम सब कड़वी, मीठी, तीखी ।

प्रखर काल की धारा पर तुम जमे हुए हो ।
और वृक्ष गिर गए, मगर तुम थमे हुए हो ।
कभी राम से अपना कुछ भी नहीं दुराया,
देखा, तुम उन के चरणों पर नमे हुए हो ।
विश्व बदर था हाथ तुम्हारे उक्त फुराया,
तेज तुम्हारा था कि अमंगल वृक्ष झुराया,
मंगल का तरु उगा; देख कर उसकी छाया,
विघ्न विपद् के घन सरके, मुँह कहीं चुराया ।
आठों पहर राम के रहे, राम गुन गाया ।

यज्ञ रहा, तप रहा तुम्हारा जीवन भू पर ।
भक्त हुए, उठ गए राम से भी, यों ऊपर ।

                            - त्रिलोचन [दिगन्त]

 

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