Warning: session_start(): open(/tmp/sess_4629a4e1b7032f0ded286bb04d67a350, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3
 राखी की चुनौती | सुभद्रा कुमारी चौहान | Rakhi Ki Chunoti by Subhadra Kumari Chauhan
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

राखी की चुनौती | सुभद्रा कुमारी चौहान

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 सुभद्रा कुमारी

बहिन आज फूली समाती न मन में ।
तड़ित आज फूली समाती न घन में ।।
घटा है न झूली समाती गगन में ।
लता आज फूली समाती न बन में ।।

कही राखियाँ है, चमक है कहीं पर,
कही बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं ।
ये आयी है राखी, सुहाई है पूनो,
बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं ।।

मैं हूँ बहिन किन्तु भाई नहीं है ।
है राखी सजी पर कलाई नहीं है ।।
है भादो घटा किन्तु छाई नहीं है ।
नहीं है खुशी पर रुलाई नहीं है ।।

मेरा बंधु माँ की पुकारो को सुनकर-
के तैयार हो जेलखाने गया है ।
छिनी है जो स्वाधीनता माँ की उसको
वह जालिम के घर में से लाने गया है ।।

मुझे गर्व है किन्तु राखी है सूनी ।
वह होता, खुशी तो क्या होती न दूनी ?
हम मंगल मनावे, वह तपता है धूनी ।
है घायल हृदय, दर्द उठता है खूनी ।।

है आती मुझे याद चित्तौर गढ की,
धधकती है दिल में वह जौहर की ज्वाला ।
है माता-बहिन रो के उसको बुझाती,
कहो भाई, तुमको भी है कुछ कसाला ? ।।

है, तो बढ़े हाथ, राखी पड़ी है ।
रेशम-सी कोमल नहीं यह कड़ी है । ।
अजी देखो लोहे की यह हथकड़ी है ।
इसी प्रण को लेकर बहिन यह खड़ी है ।।

आते हो भाई ? पुन पूछती हूँ--
कि माता के बन्धन की है लाज तुमको?
-तो बन्दी बनो, देखो बन्धन है कैसा,
चुनौती यह राखी की है आज तुमको । ।

 -सुभद्रा कुमारी चौहान
साभार - मुकुल तथा अन्य कविताएँ


[यह कविता अभी तक (1.8.2014) इंटरनेट पर प्रकाशित नहीं थी। यदि आप इसे यहाँ पढ़ने के पश्चात इसका प्रकाशन करना चाहें तो अवश्य करें किंतु 'भारत-दर्शन' का उल्लेख अवश्य करें । ]

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश