Warning: session_start(): open(/tmp/sess_87ece2c6ae0d8c4430c8fe7b4c252378, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3
 आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई | Geet by Upendranath Ashk
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई? | गीत

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk

आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?

शिशिर ऋतु की धूप-सा सखि, खिल न पाया मिट गया सुख,
और फिर काली घटा-सा, छा गया मन-प्राण पर दुख,
फिर न आशा भूलकर भी, उस अमा में मुसकराई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?

हाँ कभी जीवन-गगन में, थे खिले दो-चार तारे,
टिमटिमाकर, बादलों में, मिट चुके पर आज सारे,
और धुँधियाली गहन गम्भीर चारों ओर छाई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?

पर किसी परिचित पथिक के, थरथराते गान का स्वर,
उन अपरिचित-से पथों में, गूँजता रहता निरन्तर,
सुधि जहाँ जाकर हजारों बार असफल लौट आई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुसकराई?

- उपेन्द्रनाथ अश्क

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश