जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

धूप से छाँव की.. | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 कुँअर बेचैन

धूप से छाँव की कहानी लिख
आह से आँसुओं की बानी लिख

यह करिश्मा भी कर मुहब्बत में
आग से कागजों में पानी लिख

माँगने वाला कुछ तो देता है
तू सभी याचकों को दानी लिख़

मौत का हाथ थामकर उससे
यह भी कह जिंदगी के मानी लिख

दर्द जब तेरे दिल का राजा है
प्रीति को दिल की राजधानी लिख

-कुँअर बेचैन

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