जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम!
जन्मे और पले योरुप में
पर तुमको प्रिय भारत धाम
फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम!

रही मातृभाषा योरुप की
बोली हिन्दी लगी ललाम
फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम!

ईसाई संस्कार लिए भी
पूज्य हुए तुमको श्रीराम
फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम!

तुलसी होते तुम्हें पगतरी
के हित देते अपना चाम
फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम!

सदा सहज श्रद्धा से लेगा
मेरा देश तुम्हारा नाम
फ़ादर बुल्के तुम्हें प्रणाम!

-हरिवंशराय बच्चन

 

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