Warning: session_start(): open(/tmp/sess_b16f859300d1740fae03c94b903c6e25, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_details.php on line 3
 चलना हमारा काम है | Hindi Geet by Shivmangal Singh Suman
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

चलना हमारा काम है

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 शिवमंगल सिंह सुमन

गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर-दर खडा
जब आज मेरे सामने
है रास्ता इतना पड़ा
जब तक न मंज़िल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।

कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया
कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा हुआ, तुम मिल गई
कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है,
चलना हमारा काम है।

जीवन अपूर्ण लिए हुए
पाता कभी खोता कभी
आशा निराशा से घिरा,
हँसता कभी रोता कभी,
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठो याम है,
चलना हमारा काम है।

इस विशद विश्व-प्रवाह में
किसको नहीं बहना पड़ा,
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है।

मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
पर हो निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है,
चलना हमारा काम है।

साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए,
पर गति न जीवन की रुकी
जो गिर गए सो गिर गए,
चलता रहे शाश्वत, उसीकी सफलता अभिराम है,
चलना हमारा काम है।

मैं तो फ़क़त यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
जो बंदकर पलकें सहज
दो घूँट हँसकर पी गया
जिसमें सुधा-मिश्रित गरल, वह साक़िया का जाम है,
चलना हमारा काम है।

-शिवमंगल सिंह 'सुमन'
[हिल्लोल, सरस्वती प्रेस, बनारस, 1946]

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश