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 यूँ जीना आसान नहीं है - ग़ज़ल | Hindi Ghazal by Dr Bhawana Kunwar
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में
ईश के दर पे रख दे सर को, क्यूँ तू पड़े झमेले में

नाखूनों की बाड़ लगी है,उगते जहाँ विरोध बहुत
मजबूती से कलम पकड़ ले, खो मत जाना रेले में

खुद को ना भगवान समझ तू , माटी का इक पुतला है
इक दिन यूँ ही मिट जाएगा, जाना वहाँ अकेले में

क्यूँ तू इतना उलझ रहा है,होड़ लगाकर औरों से
बाजी जिनके हाथ लगी है, जीते वही हैं खेले में

खुद की तू पहचान बना ले, सबसे रहकर जरा अलग
वरना कितना भी महँगा हो बिक जाता है धेले में

-डॉ० भावना कुँअर
 सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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