कुआं है गांव में कुएं में घटता पानी। सोचकर मछली को है बड़ी हैरानी।
घास है जंगल में घास भी मुरझाई। सोचकर गायों की आँखें भर आईं।
पेड़ है पर्वत में पेड़ भी लो सूखता। सोचकर पंछी का मन बहुत दुखता।
-- जयप्रकाश मानस
[जयप्रकाश मानस की बाल कविताएं, यश पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स दिल्ली]
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