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 खेल का खेल | Hindi poem by Rohit kumar Happy
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

खेल का खेल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हार और जीत
भोगते हैं तीनों ही - अनाड़ी, जुगाड़ी और खिलाड़ी।
अनाड़ी को हारने पर
आती है शर्म।

जुगाड़ी
गुस्साता है,
लेकिन
खिलाड़ी हार से भी
कुछ नया
सीख जाता है;
इसलिए
हारकर भी जीत जाता है।

खेल हार-जीत में नहीं है
खेल ये है कि आप -
खेल खेलते हैं।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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