हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

शांति और युद्ध

 (कथा-कहानी) 
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रचनाकार:

 खलील जिब्रान

तीन कुत्ते धूप में बैठे गप्प लड़ा रहे थे।

एक कुत्ते ने ऊंघते हुए, दूसरे कुत्ते से कहा, "आज कुत्तों के संसार में रहना भी क्या विलक्षण बात है! देखो तो, हम किस आनंद से बिना झिझक हवा में, पानी में और भूमि पर चल-फिर सकते हैं। और ज़रा इन अविष्कारों पर भी तो विचार करो, जो केवल हमारे आराम के लिए बनाए गए हैं, हमारी नाक, कान और आँख के लिए।"

दूसरा कुत्ता बोला, "मेरे विचार में हममें सौन्दर्य की अनुभूति बहुत बढ़ गई है। हम चांद पर अपने बाप-दादे से कहीं अच्छे ढंग से भौंकते हैं। और जब अपनी प्राकृति की परछाईं पानी में देखते हैं, तो उसे कल से सुन्दर पाते हैं।"

तीसरे कुत्ते ने कहा, "परन्तु भाई, जो संतोष और आनन्द मुझे कुत्तों के विचार-साम्य से होता है, वह किसी और वस्तु से नहीं मिलता।"

जैसे ही उसने यह कहा, तो क्या देखते हैं कि कुत्तों का शिकारी चला आ रहा है। बस फिर तो भागे सब कुत्ते दुम दबाकर। जब तीनों कुत्ते बहुत जोर से भाग रहे थे, तीसरे कुत्ते ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा, "अरे भाई, परमात्मा के लिए अपनी जान बचाकर निकल जाओ क्योंकि सभ्यता हमारा पीछा कर रही है।"

- खलील जिब्रान

['Peace And War' from 'The Wanderer' by Khalil Gibran]

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