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 तर्ज़ बदलिए | Hindi poem by Krishna Sobti
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

तर्ज़ बदलिए

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 कृष्णा सोबती

गुमशुदा घोड़े पर सवार
हमारी सरकारें
नागरिकों की तानाशाही से
लामबंदी क्यूं करती हैं
और दौलतमंदों की
सलामबंदी क्यूं करती हैं
सरकारें क्यूं भूल जाती हैं
कि हमारा राष्ट्र एक लोकतंत्र है
और यहाँ का नागरिक
गुलाम दास नहीं
वो लोकतांत्रिक राष्ट्र
भारत महादेश का
स्वाभिमानी नागरिक है
सियासत की यह
तर्ज़ बदलिए।

- कृष्णा सोबती

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