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 गति का कुसूर | अशोक चक्रधर
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

गति का कुसूर

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar

क्या होता है कार में
पास की चीज़ें
पीछे दौड़ जाती हैं
तेज़ रफ़्तार में!

और यह शायद
गति का ही कुसूर है,
कि वही चीज
देर तक
साथ रहती है
जो जितनी दूर है ।

-अशोक चक्रधर

[सोची-समझी, प्रतिभा प्रतिष्ठान, नई दिल्ली]

 

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