अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं। - अनंतशयनम् आयंगार।

भारत माता

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

(राष्ट्रीय गीत)

जय जय भारत माता!
तेरा बाहर भी घर-जैसा रहा प्यार ही पाता॥
ऊँचा हिया हिमालय तेरा,
उसमें कितना दरद भरा!
फिर भी आग दबाकर अपनी,
रखता है वह हमें हरा।
सौ सौतो से फूट-फूटकर पानी टूटा आता॥
जय जय भारत माता !

कमल खिले तेरे पानी में,
धरती पर हैं आम फले।
उस धानी आँचल में आहा,
कितने देश-विदेश पले।
भाई-भाई लड़े भले ही, टूट सका क्या नाता॥
जय जय भारत माता!

मेरी लाल दिशा में ही माँ,
चन्द्र-सूर्य चिरकाल उगे।
तेरे आंगन में मोती ही,
हिल-मिल तेरे हंस चुगें।
सुख बढ़ जाता, दुःख घट जाता, जब वह है बंट जाता॥
जय जय भारत माता!

तेरे प्यारे बच्चे हम सब,
बंधन में बहु वार पड़े,
किन्तु मुक्ति के लिए यहाँ हम,
कहाँ न जूझे, कब न लड़े।
मरण शान्ति का दाता है, तो जीवन क्रांति-विधाता। ।
जय जय भारत माता!

- मैथिलीशरण गुप्त

Back
 
Post Comment