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 रहीम और कवि गंग - देनदार कोऊ और है
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
रहीम और कवि गंग (कथा-कहानी)    Print this  
Author:भारत-दर्शन संकलन | Collections

कहा जाता है कि रहीम दान देते समय ऑंखें उठाकर ऊपर नहीं देखते थे। याचक के रूप में आए लोगों को बिना देखे वे दान देते थे। अकबर के दरबारी कवियों में महाकवि गंग प्रमुख थे। रहीम के तो वे विशेष प्रिय कवि थे। एक बार कवि गंग ने रहीम की प्रशंसा में एक छंद लिखा, जिसमें उनका योद्धा-रूप वर्णित था। इसपर प्रसन्न होकर रहीम ने कवि को छत्तीस लाख रुपए भेंट किए।

रहीम की दानशीलता पर कवि गंग ने यह दोहा लिखकर भेजा -

सीखे कहां नवाबजू, ऐसी दैनी देन
ज्यों-ज्यों कर ऊंचा करो त्यों-त्यों नीचे नैन।।

रहीम ने गंग कवि की बात का उत्तर बड़ी विनम्रतापूर्वक देते हुए यह दोहा लिखकर भेज दिया-

देनदार कोऊ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें, याते नीचे नैन।।

प्रस्तुति - रोहित कुमार 'हैप्पी'

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[भारत-दर्शन संकलन]

 

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