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महाराजा का इलाज (कथा-कहानी)    Print this  
Author:यशपाल | Yashpal

उत्तर-प्रदेश की जागीरों और रियासतों में मोहाना की रियासत का बहुत नाम था । रियासत की प्रतिष्ठा के अनुरूप ही महाराजा साहब मोहाना की बीमारी की भी प्रसिद्धि हो गई थी ।

जिला अदालत की बार में, जिला मजिस्ट्रेट के यहाँ और लखनऊ के गवर्नमेंट हाउस तक में महाराज की बीमारी की चर्चा थी । युद्ध-काल में गवर्नर के यहाँ से युद्ध-कोष में चन्दा देने के लिये पत्र आया था तो महाराज की ओर से पच्चीस हजार रुपये के चेक के साथ उन के सेक्रेटरी ने एक पत्र में महाराज की बीमारी की चर्चा कर उन की और से खेद प्रकट किया था कि इस रोग के कारण वे सरकार की उचित सेवा के अवसर से वंचित रह गए हैं । इस रोग के कारण वे सरकार की उचित सेवा के अवसर से वंचित रह गये हैं।

गवर्नर के सेक्रेटरी ने महाराज द्वारा भेंट की गई धन-राशि के लिये धन्यवाद देकर गवर्नर की ओर से महाराज की बीमारी के लिये चिंता और सहानुभूति भी प्रकट की थी । वह पत्र कांच लगे चौखटे में मढ़वाकर महाराज के, ड्राइंग-रूम में लगा दिया गया था । ऐसे ही एक पोस्टकार्ड महात्मा गांधी के हस्ताक्षरों में और एक पत्र महामना मदनमोहन मालवीय का भी महाराज की , बीमारी के प्रति चिंता और सहानुभूति का विशेष अतिथियों को दिखाया जाता था ।

महाराज को साधारण लोग-बाग की तरह कोई साधारण बीमारी नहीं थी । देश और विदेश से आये हुये बड़े से बड़े डाक्टर भी उन की बीमारी का निदान और उपचार करने में मुंह की खा गये थे। लोगों का विचार था कि चिकित्सा-शास्त्र के इतिहास में ऐसा रोग अब तक देखा-सुना नहीं गया। ऐसे राज-रोग को कोई साधारण आदमी झेल भी कैसे सकता था ।

महाराज प्रति वर्ष गर्मियों में अपनी मंसूरी की कोठी में जाकर रहते थे। कोठी की अपनी रिक्शायें थीं । रिक्शा खींचने वाले कुलियों की नीली वर्दियों पर मोहाना स्टेट के पीतल के चमचमाते बिल्ले लगे रहते थे । महाराज जब कभी कोठी से रिक्शा पर बाहर निकलते तो रिक्शा की खींचते चार कुलियों के साथ-साथ, बदली के लिये दूसरे चार कुली भी साथ-साथ दौड़ते चलते । सावधानी के लिये महाराज के निजी डाक्टर घोड़े पर सवार रिक्शा के साथ-साथ रहते थे ।

सितम्बर के महीने में महाराज के पहाड़ से नीचे अपनी रियासत में या लखनऊ की कोठी पर लौटने से पहले मंसूरी में डाक्टरों के मेले की धूम मच जाती। मंसूरी के सब बड़े-बड़े होटलों में कुछ दिन पेश्तर ही कमरों के बहुत से सूट या कमरे तीन दिन के लिये सुरक्षित करवा लिये जाते । तीन-चार बड़े-बड़े बंगले भी किराये पर ले लिये जाते । इसी तरह डाक्टरों के लिये रिक्शायें और बढ़िया घोड़े भी सुरक्षित कर लिये जाते । लोग-बाग न होटलों में स्थान पा सकते न उन्हें सवारी मिल पाती । बात फैल जाती कि महाराज मोहानी को देखने के लिये देश भर से बड़े-बड़े डाक्टर आ रहे हैं।

यह सब डाक्टर महाराज के शरीर की परीक्षा और उनकी बीमारी का निदान करने के लिये बुलाये जाते थे । सब डाक्टर बारी-बारी से महाराज की परीक्षा कर चुकते तो महाराज की बीमारी के निदान का निश्चय करने के लिये डाक्टरों का एक सम्मेलन होता और फिर डाक्टरों की सम्मिलित राय से महाराज की बीमारी पर एक बुलेटिन प्रकाशित किया जाता । सब डाक्टर अपनी-अपनी फीस, आने-जानें का किराया और आतिथ्य पाकर लौट जाते परन्तु महाराजा के स्वास्थ्य में कोई सुधार न होता । न महाराज के हृदय और सिर की पीड़ा में अन्तर आता और न उन के जुड़ गये घुटनों में किसी प्रकार की गति आ पाती। नौ वर्ष से यह क्रम इसी प्रकार चल रहा था ।

उस वर्ष बम्बई मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल डाक्टर कोराल को भी महाराज मोहाना के रोग के निदान के लिये मंसूरी में आयोजित डाक्टर-सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिये निमंत्रण भेजा गया था । डाक्टर कोराल तीन वर्ष पूर्व भी एक बार इस सम्मेलन में सम्मिलित होकर अपनी फीस और आतिथ्य स्वीकार कर आये थे। उस वर्ष भी इस प्रसंग में मंसूरी की सैर कर आने में उन्हें आपत्ति न होती परन्तु भारत सरकार ने डाक्टर कोराल को अमरीका जाने वाले डाक्टरों के शिष्ट-मण्ड्रल में नियुक्त कर दिया था। शिष्टमण्डल महाराज मोहाना के निमंत्रण की तिथि से पूर्व ही बम्बई से जा रहा था।

प्राय: एक वर्ष पूर्व ही डाक्टर संघटिया वियाना में काफी समय अनुसंधान का काम कर बम्बई मेडिकल कालेज में लौट थे । डाक्टर संघटिया अनेक रोगों का इलाज 'साइकोसोमेटिक' (मानसिक उपचार) प्रणाली के माध्यम से कर रहे थे ।

डाक्टर कोराल ने महाराज मोहाना के निमंत्रण के उत्तर में सुझाव दिया कि डाक्टर संघटिया के नये अनुसंधान का प्रयोग महाराज के उपचार के लिये करके परिणाम देखा जाना चाहिये। महाराज के यहाँ भी वियाना से नये डाक्टर के आने की बात से उत्साह अनुभव किया गया और डाक्टर संघटिया के नाम निमंत्रण भेज दिया गया ।

डाक्टर संघटिया निश्चित समय पर बम्बई से मंसूरी पहुँचे। उन्हें एक बहुत बड़े होटल में सुरक्षित स्थान पर टिका दिया गया। दूसरे दिन महाराज की कोठी से एक धुड़सवार जाकर उन्हें रिक्शा पर सवार कराकर कोठी में ले गया । डाक्टर संघटिया ने देखा कि उस समय कोठी के ड्राइंग-रूम में एक अमरीकन और एक भारतीय डाक्टर भी मौजूद थे ।

महाराज मोहाना के सेक्रेटरी ने विनय से डाक्टर संघटिया को सूचना दी कि उन से पहले आये डाक्टर महाराज की परीक्षा कर लें तो वे भी महाराज की परीक्षा करने की कृपा करेंगे।

डाक्टर संघटिया ने बहुत ध्यात से दो घण्टे से अधिक समय तक रोगी की परीक्षा की। पिछले वर्षों में महाराज के रोग के निदान के सम्बन्ध में डाक्टरों के बुलेटिन देखें।

दो दिन और तीसरे दिन मध्याह्न से पूर्व तक निमंत्रित डाक्टर एक-एक करके महाराज की परीक्षा करते रहे। सभी डाक्टरों को महाराज के अंगप्रत्यंग के एक्सरे फोटो के एलबम भेंट किये गये थे।

तीसरे दिन दोपहर बाद बत्तीसों डाक्टरों की एक सभा का आयोजन किया गया था ।

कोठी के बड़े हाल में मेज-कुर्सियों के बत्तीस जोड़े अण्डाकार लगाये गये थे, जैसे विशेषज्ञों की किसी कान्फ्रेंस के लिये प्रबन्ध किया गया हो । प्रत्येक मेज पर एक डाक्टर का नाम लिखा था और मेज पर उस डाक्टर के नाम और उपाधि सहित छपे हुये कागज़ मौजूद थे । सभी मेजों पर बहुत कीमती फ़ाउण्टेनपैन और पेंसिल के सेट केसों में सजे हुये थे। कलमों, पेंसिलों और केसों पर भी खुदा हुआ था--'महाराज मोहना की ओर से भेंट ।' डाक्टरों के बैठने का क्रम अंग्रेजी वर्णमाला में डाक्टरों के नाम के पहले अक्षर के क्रम के अनुसार था ।

डाक्टरों से अनुरोध किया गया कि वे अपनी परीक्षा और निदान के सम्बन्ध में परस्पर-विचार कर अपना मंतव्य लिख लें । इस के पश्चात महाराज सभा में उपस्थित होकर डाक्टरों की राय सुनेंगे ।

डाक्टरों के सत्कार के लिये चाय-काफी, व्हिस्की, फलों के रस और हल्के-फुल्के आहार का भी प्रबन्ध था । डाक्टर लोग प्रायः एक घण्टे तक चाय, काफी, व्हिस्की, जिन की चुस्कियां लेते आपस में बातचीत करते अपने मंतव्य लिखते रहे।

साढ़े-चार बजे महाराजा साहब को एक पहिये लगी आराम कुर्सी पर हाल में लाया गया । महाराज के चेहरे पर रोगी की उदासी और दयनीय चिंता नहीं, असाधारण-दुर्बोध रोग के बोझ को उठाने का गर्व और गम्भीरता छाई हुई थी ।

महाराज के दाई ओर से डाक्टरों में क्रमशः: परीक्षा और निदान के सम्बन्ध में अपनी-अपनी राय जाहिर करनी और उसके अनुकूल उपचार के सुझाव देने आरम्भ किये ।

दो डाक्टरों ने महाराज की उपचार के लिये न्यूयार्क जाकर विद्युत चिकित्सा करवाने की राय दी । एक डाक्टर का विचार था कि महाराज को एक वर्ष तक चेकोस्लोवाकिया में ‘कालोंविवारी' के चश्मे में स्नान करना चाहिये। सोवियत का भ्रमण करके आये एक डाक्टर का सुझाव था कि महाराज की काले समुद्र के किनारे 'सोची' में 'मातस्यस्ता' स्रोत के जल से अपना इलाज करवाना चाहिये ।

महाराज गम्भीरता से मौन बने डाक्टरों की राय सुन रहे थे।
सत्ताइसवें नम्बर पर डाक्टर संघटिया से अपना विचार प्रकट करने का अनुरोध किया गया ।

डाक्टर संघटिया उठकर बोले-"महाराज के शरीर की परीक्षा और रोग के इतिहास के आधार पर मेरा विचार हैं कि महाराज का यह रोग साधारण शारीरिक उपचार द्वारा दूर होना सम्भव नहीं है........।"

महाराज ने नये, युवा डाक्टर की विज्ञता के समर्थन में एक गहरा श्वास लिया, उन की गर्दन जरा और ऊंची हो गई। महाराज ध्यान से नये डाक्टर की बात सुनने लगे ।

डाक्टर संघटिया बोले- ‘‘मुझे इस प्रकार के एक रोगी का अनुभव है। कई वर्ष से बम्बई मेडिकल कालेज के एक मेहतर को ठीक इसी प्रकार घुटने जुड़ जाने और हृदय तथा सिर की पीड़ा का दुस्साध्य रोग है....."

"चुप बदतमीज़ !"

सब डाक्टरों ने सुना और वे विस्मय से देख रहे थे कि महाराज पहिये लगी आराम कुर्सी से उठ कर खड़े हो गये थे।

महाराज के बरसों से जुड़े घुटने कांप रहे थे और उन के होंठ फड़फड़ा रहे थे, आंखें सुर्ख थीं।

"निकाल दो बाहर बदजात को! हमको मेहतर से मिलाता है.....। निकाल दो बाहर बदजात को, डॉक्टर बना है ।" महाराज क्रोध से थुथलाते हुये चीख रहे थे ।

महाराज सेवकों द्वारा हाल से कुर्सी पर ले जाये जाने की परवाह न कर कांपते हुये पावों से हाल से बाहर चले गये ।

दूसरे डाक्टर पहले विस्मित रह गये। फिर उन्हें अपने सम्मानित व्यवसाय के अपमान पर क्रोध आया और साथ ही उन के होंठों पर मुस्कान भी फिर गई।
डाक्टर संघटिया ने सब से अधिक मुस्कराकर कहा- "खैर, जो हो, बीमारी का इलाज तो हो गया......।"

- यशपाल
[ साभार : ओ भैरवी ! विप्लव कार्यालय, १९५८ ]

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