Warning: session_start(): open(/tmp/sess_4a4dcb8acf095cb449a7ef067f529f13, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 भिखारी | हास्य कविता | Hasya by Rohit Kumar Happy
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
भिखारी| हास्य कविता (काव्य)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

एक भिखारी दुखियारा
भूखा, प्यासा
भीख मांगता
फिरता मारा-मारा!

'अबे काम क्यों नहीं करता?'
'हट......हट!!'
कोई चिल्लाता,
कोई मन भर की सीख दे जाता।
पर.....पर....
भिखारी भीख कहीं ना पाता!

भिखारी मंदिर के बाहर गया
भक्तों को 'राम-राम' बुलाया
किसी ने एक पैसा ना थमाया
भगवन भी काम ना आया!

मस्जिद पहुँचा
आने-जाने वालों को दुआ-सलाम बजाया
किसी ने कौडी ना दी
मुसीबत में अल्लाह भी पार ना लाया!

भिखारी बदहवास
कोई ना बची आस
जान लेवा हो गई भूख-प्यास।
जाते-जाते ये भी आजमा लूँ
गुरूद्वारे भी शीश नवा लूं!
'सरदार जी, भूखा-प्यासा हूं।।।
'ओए मेरा कसूर अ?'
भिखारी को लगा किस्मत बडी दूर है।

आगे बढा़....
तभी एक देसी ठेके से बाहर निकलता शराबी नजर आया
भिखारी ने फिर अपना अलाप दोहराया।।
'बाबू भूखे को खाना मिल जाए
तेरी जोडी बनी रहे, तू ऊँचा रूतबा पाए।'

'अरे भाई क्या चाहिए'
'बाबू दो रूपया ---
भूखे पेट का सवाल है!'
शराबी जेब में हाथ डाल बुदबुदाया।।।
'अरे, तू तो बडा बेहाल है!'
'बाबू दो रूपये......'
'अरे दो क्या सौ ले।'
'बाबू बस खाने को......दो ही.....दो ही काफ़ी है।'
'अरे ले पकड सौ ले...
पेट भर के खाले......
बच जाए तो ठररे की चुस्की लगा ले।।।'

हाथ पे सौ का नोट धर शराबी आगे बढ ग़या।

भिखारी को मानो अल्लाह मिल गया।

'तेरी जोडी बनी रहे, तू ऊँचा रूतबा पाए!'
भिखारी धीरे से घर की राह पकडता है।
रस्ते में फिर मंदिर, मस्जिद और गुरूद्वारा पड़ता है।

भिखारी धीरे से बुदबुदाता है.......
'वाह रे भगवन्.......
तू भी खूब लीला रचाता है
मांगने वालों से बचता फिरता, इधर-उधर छिप जाता है
रहता कहीं हैं
बताता कहीं है
आज अगर ठेके न जाता
खुदाया, मैं तो भूखों ही मर जाता!
इधर-उधर भटकता रहता
तेरा सही पता भी न पाता
तेरा सही पता भी न पाता!
तेरा सही पता भी न पाता!!

- रोहित कुमार 'हैप्पी'
[लोक-कथ्य पर आधारित एक हास्य-कविता]

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश