Warning: session_start(): open(/tmp/sess_486da1e051788e6d40c37ad481c0549e, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत  (काव्य)    Print this  
Author:गोपालदास ‘नीरज’

अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए

आग बहती है यहाँ, गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए, कहाँ जाकर नहाया जाए

मेरा मकसद है के महफिल रहे रोशन यूँही
खून चाहे मेरा, दीपों में जलाया जाए

मेरे दुख-दर्द का, तुझपर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी ना खाया जाए

जिस्म दो होके भी, दिल एक हो अपने ऐसे
मेरा आँसू, तेरी पलकों से उठाया जाए

गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में,‘नीरज' को बुलाया जाए

- नीरज


कवि नीरज को सुनिए

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश