Warning: session_start(): open(/tmp/sess_939d0d813e606568eefe412269a77ff0, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 दूध में दरार पड़ गई | अटल बिहारी वाजपेयी की कविता | Poem by Atal Bihari Vajpayee
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
दूध में दरार पड़ गई | कविता (काव्य)    Print this  
Author:अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया।
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद।
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।
बात बनाएं, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।

- अटल बिहारी वाजपेयी
[Poems by Atal Bihari Vajpayee]

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश