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 फूल और काँटा | Phool Aur Kante | Ayodhya Singh Upadhyaya 'Hariaudh
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
फूल और काँटा | Phool Aur Kanta (काव्य)    Print this  
Author:अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

हैं जनम लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता।
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता।।

मेह उन पर है बरसता एक-सा,
एक-सी उन पर हवाएं हैं बहीं।
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक-से होते नहीं।।

छेद कर कांटा किसी की उंगलियां,
फाड़ देता है किसी का वर वसन।
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भौंरें का है बेध देता श्याम तन।।

फूल लेकर तितलियों को गोद में,
भौंरें को अपना अनूठा रस पिला।
निज सुगंधों औ निराले रंग से,
है सदा देता कली जी की खिला।।

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