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प्रभु या दास - मैथिलीशरण गुप्त की कविता | Hindi Poem by Mathilishran Gupt
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
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बुलाता है किसे हरे हरे, वह प्रभु है अथवा दास? उसे आने का कष्ट न दे अरे, जा तू ही उसके पास ।
- मैथिलीशरण गुप्त
Posted By डॉ निर्मल कौशिक सेवानिवृत्त प्राध्यापक on Tuesday, 07-Jul-2020-07:08
भारत दर्शन का नया रुप देख कर बहुत अच्छा लगा। मेरी और से शुभकामनायें। मैंने एक कविता हिन्दीमहिमा भेजी है। प्रकाशित कर कृतार्थ करें। मेरी कविताओं पर शोध कार्य भी हो चुके हैं। मेरी तीस गद्यात्मक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं।अनेक संस्थाओ और संस्थानों द्वारा इस नाचीज को सम्मानित किया जा चुका है। अपनी पत्रिका भारत दर्शन में स्थान प्रदान कर कृतार्थ करें।
धन्यवाद ।
डा.निर्मल कौशिक
Faridkot Punjab
nirmalkaushiksep@gmail.com