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 झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं | कृष्ण सुकुमार की ग़ज़ल
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं | ग़ज़ल (काव्य)    Print this  
Author:कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं
मेरे तश्नालब पर पहरे उसके हैं

हमने दिन भी अँधियारे में काट लिये
बिजली, सूरज, चाँद-सितारे उसके हैं

चलना मेरी ज़िद में शामिल है वर्ना
उसकी मर्ज़ी, सारे रस्ते उसके हैं

जिसके आगे हम उसकी कठपुतली हैं
माया के वे सारे पर्दे उसके हैं

मुड़ कर पीछे शायद ही अब वो देखे
हम पागल ही आगे-पीछे उसके हैं

- कृष्ण सुकुमार

 

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