Warning: session_start(): open(/tmp/sess_9b201b40e89d20bc5b1528638dd8cdf5, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 नीरज के लोकप्रिय दोहे | Neeraj Ke Dohe
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
नीरज के लोकप्रिय दोहे  (काव्य)    Print this  
Author:गोपालदास ‘नीरज’

गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न। 
अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न॥ 

भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम।
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम॥

हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान।
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान॥

कर्ज न लो, ना कर्ज़ दो, दोनों से हो हानि।
ऋण देकर धन डूबता, ऋण लेकर हो ग्लानि॥

राजनीति ये वोट की, ये कुर्सी की चाह।
कर देगी निश्चित हमें ये इक रोज़ तबाह॥

हम तो बस इक पेड़ हैं खड़े प्रेम के गाँव।
खुद तो जलते धूप में औरों को दें छाँव॥

खींचे बिना कमान ज्यों चले न कोई तीर।
तैसे बिन पुरुषार्थ के साथ न दे तकदीर॥

चाहो बसो पहाड़ पर या फूलों के गाँव।
माँ के आँचल से अधिक शीतल कहीं न छाँव॥

बड़े हुए हम थामकर जिसकी बूढ़ी बाँह।
याद हमें है आज भी उस बरगद की छाँह॥

क्षण-क्षण बदले रंग वो कहें जिसे संसार।
कुछ भी स्थिर है नहीं नफरत हो या प्यार॥

-नीरज

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश