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आघात (कथा-कहानी)    Print this  
Author:दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar

चौधरी भगवत सहाय उस इलाके के सबसे बड़े रईसों में समझे जाते थे। समीप के गाँवों में वे बड़ी आदर की दृष्टि से देखे जाते थे। अपने असामियों से वे बड़ी प्रसन्नतापूर्वक बातें करते थे। ये बड़े योग्य पुरुष। यही कारण था कि थाने में तथा कचहरियों में भी वे सम्मान के पात्र समझे जाते थे। उनके पहनावे में तथा लखनऊ के नवाबों की वेशभूषा में कोई विशेष अंतर न था । वही दुकलिया टोपी, पाँवों में चुस्त पायजामा तथा एक ढीली-ढाली अचकन से वह नवाब वाजिद अली शाह के कुटुंबी प्रतीत होते थे। किंतु थे पूर्णतया आधुनिक रोशनी के मनुष्य मित्र मंडली में बैठकर मंदिरापान से भी कुछ निषेध न था। सिनेमा के तो पूर्ण रसिक थे। सुना कि मुरादाबाद में अमुक चित्र चल रहा है, तनिक प्रशंसा सुनी उस चित्र की कि चल दिए बाल-बच्चों को लेकर पत्नी तो उनकी साक्षात् लक्ष्मी ही थी। घर में सुख-शांति का साम्राज्य था। लक्ष्मी तो उनके यहाँ जैसे घुटने तोड़कर ही आ बैठी थी। दो-चार भैंस तथा गाएँ भी दूध देती ही थीं। किसी वस्तु का अभाव न था। केवल कभी-कभी उन्हें यह चिंता सताया करती थी कि मरे वक़्त इस संपत्ति का क्या होगा?

परमेश्वर की लीला विचित्र है। एक वर्ष के उपरांत चौ० साहब की निराशा की वाटिका में आशा के पुष्पों का प्रादुर्भाव हुआ। चौ० साहब का मुख प्रसन्नता से विलक्षण तथा उस पर एक विचित्र उल्लास की रेखा उभर आई।

पुत्र-जन्म के उपलक्ष्य में आसपास के गाँवों में सर्वसाधारण मनुष्यों को आमंत्रित किया गया। चौ० साहब के सभी मित्र भी इसमें सम्मिलित हुए। दावत का प्रबंध उच्च पैमाने पर किया गया था। प्रसिद्ध प्रसिद्ध हलवाई बुलाए गए थे। तीन दिन तक मनुष्यों का आवागमन चलता रहा। सभी चौ० साहब की जी-तोड़ प्रशंसा कर रहे थे। ऐसी दावत उस इलाके में आज तक न हुई थी। चौ० साहब के भी दो-ढाई हज़ार रुपए ठंडे हो गए थे। लोग कहते थे, "यदि धन दें तो दिल भी ऐसा ही दें। गर्व तो बेचारों को छू तक नहीं गया है। देखा न, किस प्रकार अतिथि स्वागत में लगे हुए थे, जैसे सब अपने ही मेहमान हों।" दावत को लेकर तरह-तरह की चर्चा चल रही थी।

पुत्र का नाम महेंद्र निश्चित किया गया। वह अत्यंत सुंदर था। आयु के साथ-साथ उसका सौंदर्य भी विकसित होता गया। उसने पाँच वर्ष की आयु में पदार्पण किया और गाँव के एक स्कूल में भर्ती करा दिया गया।

उसका मस्तिष्क अत्यंत तीव्र था। हाईस्कूल में भर्ती होने के कुछ दिनों बाद ही उसने अपनी विशाल बुद्धि का परिचय दिया। डिस्ट्रिक्ट एलोकेशन कॉन्टेस्ट में उसने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। उस समय उसकी आयु सोलह वर्ष से अधिक न थी । पुरस्कारस्वरूप उसे कई मेडल भी मिले। तब वह नवीं कक्षा में था। वह सर्वदा अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता था अध्यापक उसकी कुशाग्र बुद्धि पर मुग्ध थे।

उस वर्ष जब वह दसवीं कक्षा में आया, देवबंद में एक अत्यंत विशाल वाग्मिता प्रतिस्पर्धा हुई, जिसमें यू०पी० के सभी स्कूलों ने भाग लिया था। उस स्कूल से महेंद्र तथा एक और विद्यार्थी को भेजा गया। स्पीच अंग्रेज़ी में देनी थी।

महेंद्र की स्पीच को सुनकर जज महोदय आश्चर्यचकित हो उसका मुँह ताकने लगे। उन्हें स्वप्न में भी यह विचार न था कि कोई भारतीय विद्यार्थी इतना स्पष्ट तथा सुंदर व्याख्यान अंग्रेज़ी में दे सकता है। उसकी वाणी में जादू था। मनुष्य मूर्तिवत् उसके मुख को निहार रहे थे। स्पीच समाप्त हुई। श्रोतागणों की तंद्रा टूटी। उन्हें आश्चर्यान्वित हो दाँतों तले उँगली दबानी पड़ी। तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गुंजित हो उठा।

सभापति महोदय ने उठकर अपना निर्णय दिया। महेंद्र प्रथम आया। उसे चाँदी की शील्ड मिली तो उसने स्कूल को दे दी। इसके पश्चात् कई मेडल भी उसे पुरस्कारस्वरूप मिले।

सेकेंड क्लास के कम्पार्टमेंट में महेंद्र एक साथी के साथ बैठा आ रहा था, देवबंद से लौटकर। यह सूचना कि महेंद्र प्रथम आया है, तार द्वारा पहले ही स्कूल में भेज दी गई थी। हेडमास्टर के लिए यह गौरव की बात थी कि उसके स्कूल का विद्यार्थी प्रथम आया । वह भी यू०पी० के थे। अतएव डी०ए०वी० हाईस्कूल के हेडमास्टर साहब अन्य विद्यार्थियों सहित स्टेशन पर आए थे, महेंद्र के स्वागतार्थ मुज़फ्फरनगर का स्टेशन समीप आया तो महेंद्र का हृदय बाँसों उछलने लगा। उसने बाहर झाँककर देखा, स्टेशन पर विद्यार्थियों की भीड़ उसका हृदय आनंदातिरेक से नृत्य कर उठा। अचानक अकाल का झोंका आया । सिगनल से माथे की टक्कर लगी और वह पृथ्वी पर गिरकर छटपटाने लगा। जंजीर खिंची, किंतु गाड़ी स्टेशन पर ही आकर रुकी। जब तक विद्यार्थी वहाँ तक पहुँचे, उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

चौ० साहब की आशाओं पर निराशा की चादर पड़ गई।

-दुष्यन्त कुमार

(यह कहानी दुष्यन्त कुमार की प्रारंभिक गद्य रचनाओं में से एक है।)

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