Warning: session_start(): open(/tmp/sess_d81699b4a85f4cb1e921225d1776595f, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया  (काव्य)    Print this  
Author:त्रिलोक सिंह ठकुरेला

कुण्डलिया 

मोती बन जीवन जियो, या बन जाओ सीप।
जीवन उसका ही भला, जो जीता बन दीप।।
जो जीता बन दीप, जगत को जगमग करता।
मोती सी मुस्कान, सभी के मन मे भरता।
‘ठकुरेला’ कविराय, गुणों की पूजा होती।।
बनो गुणों की खान, फूल, दीपक या मोती।।

#

चलते चलते एक दिन, तट पर लगती नाव।
मिल जाता है सब उसे, हो जिसके मन चाव।।
हो जिसके मन चाव, कोशिशें सफल करातीं।
लगे रहो अविराम, सभी निधि दौड़ी आतीं।
‘ठकुरेला’ कविराय, आलसी निज कर मलते।
पा लेते गंतव्य, सुधीजन चलते चलते।।

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
 [ आनन्द मंजरी, 2019, राजस्थानी ग्रन्थागार, राजस्थान]

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश