हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।
डॉ सुधेश के दोहे (काव्य)    Print this  
Author:डॉ सुधेश

हिन्दी हिन्दी कर रहे 'या-या' करते यार। 
अंगरेजी में बोलते जहां विदेशी चार॥

मुख पोथी ही नहीं है दर्पण है साकार।
इस पोथी में झांकता अपना मुख सँसार॥

पाकी भी नापाक है हिंसा जिस का धर्म। 
गैरों से है दुश्मनी करता रोज कुकर्म॥

बांस की है बांसुरी शहदीली है तान। 
तन को छिदवाये बिना कैसे निकले गान॥

बिना चाह मिलता नहीं सिर्फ न काफी चाह। 
खून पसीना एक कर मिले कभी तो वाह॥

वाह मिले या आह भी करता क्यों परवाह। 
जीवन जीले  प्रेम से आह मिले या वाह॥

सूने घर में बैठ कर भर लो चाहे आह। 
या जीवन संग्राम में पा लो जीवन थाह॥

कभी न आता कल  यहां  कल कल कहते रोज़।
आज करे सो जानिये यही सोचिये रोज॥

यह पक्षी है हृदय का जिसे शून्य की  आस। 
पात्र मिले या जलधि भी इस की बुझी न प्यास॥

दर्द बांटता है वही जिस ने झेला दर्द। 
जो केवल नामर्द है क्या होगा हमदर्द॥

देने वाला वही है लेने वाला और। 
देने वाला है बडा बिन मांगे दे और॥

डर डर गुजरी जिन्दगी ऐसे डर को छोड़। 
नींबू जैसी जिन्दगी इस को खूब निचोड़॥

दादा की दादागिरी से भारतीय बेहाल। 
दीदी की दादागिरी से चिन्तित है बंगाल॥

दीदी के पीछे लगे दादा अब बेहाल।
अब इतनी चीत्कार है आगे कौन हवाल॥

जनता से क्या कहेंगे जनता करे सवाल।
जिसे लूट कर कर दिया बस केवल कंगाल॥

जो अब मालामाल हैं वे होंगे कंगाल। 
आगे आगे देखिये आएगा भूचाल॥

सुबह सदा गुड सम मुझे चीनी जैसी शाम। 
सारे दिन मीठा रहूं धन्यवाद श्रीराम॥

- डॉ सुधेश 
  314 सरल अपार्टमैंट्स, द्वारका, सैक्टर 10
  दिल्ली 110075 
  फ़ोन 9350974120
  ई-मेल: dr.sudhesh@gmail.com

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश