Warning: session_start(): open(/tmp/sess_45c4ccdb330d63915be2a34200d07b59, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 भिक्षुक | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Bhikshuk - Suryakant Tripathi Nirala
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
भिक्षुक | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (काव्य)    Print this  
Author:सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

वह आता --
दो टूक कलेजे के करता--
पछताता पथ पर आता।

पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को -- भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता --
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख होंठ जब जाते
दाता भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।

चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।

-निराला

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश