जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
राम  (काव्य)    Print this  
Author:आशीष मिश्रा | इंग्लैंड

  लिखने को कुछ और चला था
                   स्वतः कलम ने राम लिखा
    र पर आ की एक मात्रा
                   म मिल कर निष्काम लिखा

    अक्षर दोनों नाच रहे थे 
                 ख़ुद को अव्वल आँक रहे
    सचमुच दोनों ने मानो 
                  बजरंगी का प्रणाम लिखा 

    शब्द बना जो वही पुरातन
                  नये पृष्ठ पर नया आयतन
    जितनी बार पढ़ा उसको
                  दोनों  आखर  राम  दिखा

    फिर क्या था बस वही हुआ
                 कुछ और जो लिखता नहीं हुआ
    हृदय भरा पर रहा अधूरा
                  शब्द  अयोध्या  धाम  लिखा

    ऐसा एक हुआ उजियारा
                   नयी लहर को मिला किनारा
    कलम बनी पतवार हो जैसे
                  भावों  का  परिणाम  लिखा

    रा  पर  वाल्मीक  सोहे 
                    म  पर  तुलसी  के  दोहे
    सुबह शब्द वो ॐ लगा
                लिखा दोपहर शाम लिखा

    लिखने को कुछ और चला था
                  स्वतः कलम ने राम लिखा

-आशीष मिश्रा, इंग्लैंड

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