Warning: session_start(): open(/tmp/sess_207f34d0878dc42d8fa1cbbb966c04f6, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 हंसों के वंशज | गीत | Hindi Geet by Raj Gopal Singh
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
हंसों के वंशज | गीत (काव्य)    Print this  
Author:राजगोपाल सिंह

हंसों के वंशज हैं लेकिन
कव्वों की कर रहे ग़ुलामी
यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन
होती देख रहे नीलामी
दर्पण जैसे निर्मल मन को
क्यों पत्थर के नाम कर दिया

पाने का लालच क्या जागा
गाँव की गठरी भी खो बैठे
स्वाभिमान, सम्मान सम्पदा
गिरवी रख कँगले हो बैठे
हरा-भरा संसार न जाने
क्यों पतझर के नाम कर दिया

-राजगोपाल सिंह

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश