भाषा विचार की पोशाक है। - डॉ. जानसन।
रोते-रोते रात सो गई  (काव्य)    Print this  
Author:अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

झुकी न अलकें
झपी न पलकें
सुधियों की बारात खो गई

दर्द पुराना
मीत न जाना
बातों ही में प्रातः हो गई

घुमड़ी बदली
बूँद न निकली
बिछुड़न ऐसी व्यथा बो गई
रोते-रोते रात सो गई

-अटल बिहारी वाजपेयी

 

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