जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
चंद्रशेखर आज़ाद | गीत  (काव्य)    Print this  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

शत्रुओं के प्राण उन्हें देख सूख जाते थे 
ज़िस्म जाते काँप, मुँह पीले पड़ जाते थे
                   देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

पल में बदल भेष फुर्र हो जाते थे 
तंत्र खुफिया को, नाकों चने चबवाते थे 
                   देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

'हूँ मैं आज़ाद और रहूंगा आज़ाद ही'
विप्लवी साथियों को, शान से बताते थे 
                    देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

जीते-जी 'आज़ाद' को पकड़ कौन पाएगा ?
सुन सिंहनाद बड़े-बड़े हिल जाते थे 
                    देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

भीलों के सखा निशाना ऐसा वे लगाते थे 
देखें सब दंग, मुँह खुले रह जाते थे 
                    देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

 

- रोहित कुमार 'हैप्पी' 
  न्यूज़ीलैंड

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