Warning: session_start(): open(/tmp/sess_abf0c58c15274e7c102a56fbbcd73a85, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_lit_details.php on line 1
 यूँ तो मिलना-जुलना | Hindi Ghazal by Prageet Kunwar
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
यूँ तो मिलना-जुलना  (काव्य)    Print this  
Author:प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया

यूँ तो मिलना-जुलना चलता रहता है
मिलकर उनका जाना खलता रहता है

उसकी आँखों की चौखट पर एक दिया
बरसों से दिन-रात ही जलता रहता है

कितने कपड़े रखता है अलमारी में
जाने कितने रंग बदलता रहता है

सूरज को देखा है पानी में गिरते
गिरकर फिर भी रोज निकलता रहता है

यादों में रह जाते हैं फिर भी ज़िंदा
जिन लमहों को वक़्त निगलता रहता है

औरों ने रक्खा था मेरे पास कभी
मेरे भीतर दर्द जो पलता रहता है

- प्रगीत कुँअर
  सिडनी, ऑस्ट्रेलिया

Previous Page  |   Next Page
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश