जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
उतने सूर्यास्त के उतने आसमान (काव्य)    Print this  
Author:आलोक धन्वा

उतने सूर्यास्त के उतने आसमान
उनके उतने रंग
लम्बी सड़कों पर शाम
धीरे बहुत धीरे छा रही शाम
होटलों के आसपास
खिली हुई रोशनी
लोगों की भीड़
दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे
उनके कंधे, जानी-पहचानी आवाज़ें
कभी लिखेंगे कवि इसी देश में
इन्हें भी घटनाओं की तरह।

-आलोक धन्वा

 

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