हिंदी भारतीय संस्कृति की आत्मा है। - कमलापति त्रिपाठी।

यहाँ कुछ रहा हो | ग़ज़ल (काव्य)

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Author: शमशेर बहादुर सिंह

यहाँ कुछ रहा हो तो हम मुँह दिखाएँ
उन्हों ने बुलाया है क्या ले के जाएँ

कुछ आपस में जैसे बदल सी गई है
हमारी दुआएँ तुम्हारी बलाएँ

तुम एक ख़्वाब थे जिस में ख़ुद खो गए हम
तुम्हीं याद आएँ तो क्या याद आएँ

वो इक बात जो ज़िंदगी बन गई है
जो तुम भूल जाओ तो हम भूल जाएँ

वो ख़ामोशियाँ जिन में तुम हो न हम हैं
मगर हैं हमारी तुम्हारी सदाएँ

बहुत नाम हैं एक 'शमशेर' भी है
किसे पूछते हो किसे हम बताएँ

-शमशेर बहादुर सिंह

 

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